जिनकी बाहें बलमायी, ललाट अरुण है,
भामिनी वही तरुणी, नर वही तरुण है
है वही प्रेम, जिसकी तरंग उच्छल है,
वारुणी-धार में मिश्रित जहाँ गरल है
उद्याम प्रीति बलिदान-बीज बोती है;
तलवार प्रेम से और तेज़ होती है
- दिनकर
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1 comment:
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