काया! कल्पित मिट्टी क केवल देह नहीं,
तीक्ष्ण बुद्धि संग प्रचण्ड अग्निमये सर दे दो!
नमन करें जिसके चरणों में सभी दिशायें,
वज्र शक्ति वर आदौ बाली धड़ दे दो!!
कर बाँध खरें हों कभी नहीं नियति के आगे,
संकल्प भीष्म कर, स्वयं साक्षी हो, प्रण दे दो!
धूमिल चेतन पलक उठाये कभी आशा में,
हो कल्प-वृक्ष, कर मन विराट, शरण दे दो!
दुर्गम पथ जो चले शिखर तक जा पहुंचे,
निर्भय हो डग भरूँ, वो शक्ति सबल दे दो!
शंखनाद हो, विजय ध्वनि से गूंज उठे,
समग्र चेतना सहित मुझे वह पल दे दो!!
जी चाहे उड़ जाऊ गगन के पार कभी,
द्रुत गति में सम्मलित, वेगवान वह पर दे दो!
कुपित काल जो चढ़े कभी प्राणों को खींचे,
सीमांत सतह के पार मुझे एक रण दे दो!
नहीं सीघ्रता मुझे तुम्हारी चिंतन में,
जीवन है पर अल्प, आज या कल दे दो!!
तीक्ष्ण बुद्धि संग प्रचण्ड अग्निमये सर दे दो!
नमन करें जिसके चरणों में सभी दिशायें,
वज्र शक्ति वर आदौ बाली धड़ दे दो!!
कर बाँध खरें हों कभी नहीं नियति के आगे,
संकल्प भीष्म कर, स्वयं साक्षी हो, प्रण दे दो!
धूमिल चेतन पलक उठाये कभी आशा में,
हो कल्प-वृक्ष, कर मन विराट, शरण दे दो!
दुर्गम पथ जो चले शिखर तक जा पहुंचे,
निर्भय हो डग भरूँ, वो शक्ति सबल दे दो!
शंखनाद हो, विजय ध्वनि से गूंज उठे,
समग्र चेतना सहित मुझे वह पल दे दो!!
जी चाहे उड़ जाऊ गगन के पार कभी,
द्रुत गति में सम्मलित, वेगवान वह पर दे दो!
कुपित काल जो चढ़े कभी प्राणों को खींचे,
सीमांत सतह के पार मुझे एक रण दे दो!
नहीं सीघ्रता मुझे तुम्हारी चिंतन में,
जीवन है पर अल्प, आज या कल दे दो!!
1 comment:
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