Friday, February 29, 2008
चोर का इंटरव्यू
एक दिन अख़बार में चोर का इंटरव्यू छपा. बहुत धमाकेदार इंटरव्यू. उसके बाद इलेक्ट्रॉनिक चैनल वाले भी इसका इंटरव्यू लेने आए. चोर ने बड़ी निर्भीकता से अपनी बात बिना किसी लाग-लपेट से कही. अगले दिन उसके शहर के एसपी का फ़ोन आया,‘‘तुमको चोरी करनी है तो चोरी करो. इस तरह का इंटरव्यू मत दो, नहीं तो तुम्हें थाने के अंदर कर दिया जाएगा.’’
चोर यह समझ नहीं पाया. यह कैसा लोकतंत्र है! क्या मीडिया को इंटरव्यू देने के लिए किसी को धमकी दी जा सकती है, गिरफ़्तारी भी हो सकती है! उसने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को पत्र लिखा. आयोग का जवाब आया,‘‘हमने राज्य सरकार को नोटिस भेजा है. एक महीने के भीतर उसका जवाब मांगा है.’’
चित्रांकन-हरीश परगनिहा
एक महीने के बाद आयोग का जवाब आया-राज्य सरकार की ओर से कोई जवाब नहीं आया. आप चाहें तो उच्चतम न्यायालय का दरवाज़ा खटखटा सकते हैं. चोर के पास न इतने पैसे थे और न ही इतना समय कि वह कोर्ट के चक्कर लगाए. उसने नेताओं की तरह एक प्रेस बयान जारी किया कि मीडिया ने मेरी बातों को तोड़-मरोड़कर पेश किया है.
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