Thursday, February 28, 2008

ऐ मेरे हमनशीं चल कहीं

ऐ मेरे हमनशीं चल कहीं और चल इस चमन में अब अपना गुज़ारा नहीं।
बात होती गुलों की तो सह लेते हम अब तो कांटों पे भी हक़ हमारा नहीं।।

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