Sunday, January 6, 2008

सफर को जब भी किसी दास्तान में रखना

सफर को जब भी किसी दास्तान में रखना
कदम यकीनन, मंजिल गुमान में रखना
जो साथ है वही घर का नशीब है, लेकिन
जो खो गया, उसे भी मकान में रखना
जो देखती हैं निगाहें वही नहीं सब कुछ
ये एहतियात भी अपने बयान में रखना
वो एक ख्वाब जो चेहरा कभी नहीं बनता
बनाकर चाँद उसे आसमान में रखना
चमकते चाँद सितारों का क्या भादोसा है?
ज़मीं कि धुल भी अपनी उदान में रखना

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