Wednesday, March 5, 2008
महाशिवरात्री
शीश पे जटा, जटा में पवित्र गंगा, बाल चंद्र, मस्तक में प्रलयंकारी ज्वाला, गले में भुजंगों की माला, कंठ में हलाहल विष, शरीर पे मसान का भस्म, निरंतर प्रेत और पिशाचों से घिरे रहने वाले, शस्त्र त्रिशूल, वाहन बैल, अति दुर्गम कैलाश है जिनका निवास - आप हैं अमंगल वेषधारी, अति मंगलकारी, प्रकृति का वो संहारक स्वरूप जो व्यवस्था में सकारात्मक प्रलय तथा विध्वंस का द्योतक हैं - परम कल्याणमय शिव| जिनके वमांग में स्वयं शक्ति विराजमान हैं|
ध्यान रहे आपको शिव को केवल पढ़ना नहीं है, केवल समझना नहीं है अपितु जीना है| शिव को जीना होगा तभी हो सकता है वो क्रांति आपके अस्तित्व में जिसकी आपको लालसा ही नहीं, परम आवश्यकता है|
महाशिवरात्रि, एक महापर्व जो हमें स्मरण कराता है उस अनुभूति का जहाँ सृजन के लिए प्रलय घटित होता है| यदि आप ध्यान दें तो ज्ञात होगा की ये घटना निरंतर घटित हो रही है, आपके अंतःकरण में, निरंतर!
जानिए प्रकृति के शिव स्वरूप को! जानिए अपने कल्याणकारी स्वरूप को! जानिए अपने अंतस में विराजमान मंगलकारी विध्वंस को!
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