Saturday, February 16, 2008

श्री हनुमान चालीसा


दोहा
श्री गुरु चरन सरोज रज, निजमन मुकुरु सुधारि
बरनऊँ रघुवर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार
बल बुद्धि विद्या देहु मोहि, हरहु कलेश विकार


चौपाई
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर
रामदूत अतुलित बल धामा
अंजनी पुत्र पवनसुत नामा

महावीर बिक्रम बजरंगी
कुमति निवार सुमति के संगी
कंचन बरन बिराज सुबेसा
कानन कुण्डल कुंचित केसा

हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजे
काँधे मूँज जनेऊ साजै
संकर सुमन केसरिनन्दन
तेज प्रताप महा जग बन्दन

विद्यावान गुनी अति चातुर
राम काज करिबे को आतुर
प्रभु चरित्र सुनबे को रसिया
राम लखन सीता मन बसिया

सूक्ष्म रूप धरी सियहिं दिखावा
बिकट रूप धरि लंक जरावा
भीम रूप धरि असुर संहार
रामचन्द्र के काज सँवारे

लाय संजीवन लखन जियाये
श्री रघुबीर हरषि उर लाये
रघुपति किन्ही बहुत बड़ाई
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं
अस कही श्रीपति कंठ लगावैं
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा
नारद सारद सहित अहिसा

जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते
कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा
राम मिलाय राजपद दीन्हा

तुम्हरो मन्त्र बिभीषण माना
लंकेश्वर भये सब जग जाना
जुग सहस्र जोजन पर भानू
लील्यो ताहि मधुर फल जानू

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं
जलधि लाँघि गए अचरज नाहीं
दुर्गम काज जगत के जेते
सुगम अनुग्रह तुम्हरो तेते

राम दुआरे तुम रखवारे
होत न आज्ञा बिनु पैसारे
सब सुख लहै तुम्हारी सरना
तुम रक्षक काहू को डर ना

आपन तेज सम्हारो आपै
तीनों लोक हाँक ते काँपे
भूत पिशाच निकट नहीं आवै
महाबीर जब नाम सुनावै

नासै रोग हरै सब पीरा
जपत निरंतर हनुमत बीरा
संकट ते हनुमान छुड़ावै
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै

सब पर राम तपस्वी राजा
तिन के काज सकल तुम साजा
और मनोरथ जो कोई लावै
सोई अमित जीवन फल पावै

चारों जुग परताप तुम्हारा
है परसिद्ध जगत उजियारा
साधु सन्त के तुम रखवारे
असुर निकंदन राम दुलारे

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता
असवार दीन जानकी माता
राम रसायन तुम्हरे पासा
सदा रहो रघुपति के दासा

तुम्हरे भजन राम को पावै
जनम जनम के दुःख बिसरावै
अन्त काल रघुबर पुर जाई
जहाँ जन्म हरी-भक्त कहाई

और देवता चित्त न धरई
हनुमत सेई सर्ब सुख करई
संकट कटै मिटै सब पीरा
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा

जय जय जय हनुमान गोसाईं
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं
जो सत बार पाठ कर कोई
छूटहि बंदि महा सुख होई

जो यह पढे हनुमान चालीसा
होय सिद्धि साखी गौरीसा
तुसलीदास सदा हरि चेरा
कीजै नाथ ह्रदय महँ डेरा

दोहा
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप
राम लखन सीता सहित, ह्रदय बसहु सुर भूप

इति

No comments: