Saturday, January 5, 2008

तू चल राही


मंजिलें अभी दूर हैं, तू चल राही
जो वक्त थक-कर चूर है, तू चल राही

लेकर हाथों में तू कर न मल राही
वक्त मुठ्ठी में पकड़, तू चल राही

ज़िंदगी है बस अभी, न कल राही
मौत का है डर इसे हर पल राही

क्यों रूक गया है देख काली रात को!?
ले मशाल-ऐ-ज़िंदगी, तू चल राही


ले-ले प्रण जो तू अगर अटल राही
खुद जायेंगे सब बिघ्न-बढ़ा टल राही

मत बैठ सजाये चिता, अब न जल राही
जब ज़िंदगी है, क्यों नहीं हलचल राही

ये
सफर है, न अभी विश्राम ले
दे रूह को आराम, अब तू चल राही

क्यों सो रहा है स्वप्न के आगोश में!?
ये ज़िंदगी है, होश कर, तू चल राही

जोश भर तू, अब जरा मचल राही
देख मंजिल सामने, तू चल राही

है कठिन जो ये डगर, तू चल राही
पा जाएगा मंजिल मगर, तू चल राही