जब कभी अहं पर नियति चोट देती है,
कुछ चीज़ अहं से बड़ी जन्म लेती है
नर पर जब भी भीषण विपत्ति आती है,
वह उसे और दुर्धर्ष बना जाती है
चोटें खाकर बिफरो, कुछ अधिक तानो रे !
धधको, स्फुलिंग से, बढ़ अंगार बनो रे !
- दिनकर
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