Sunday, January 6, 2008

समर बेला




फ़िर आया समर का बेला है,
यह तो वीरों का मेला है
अब मिले जीत या वीरगति!
रहें सदा हम धीर मति

कसें कवच, कर ढाल लिए,
दूजे में खड्ग विशाल लिए
जीने-मरने का भय त्यागे,
हम चलें सदा सबसे आगे

माना पथ दुर्गम होगा,
मूक दर्शन से तो सुगम होगा!
पुरुषार्थ वीर जो दिखलाये
पल भर तो काल भी डर जाए!!

जो मिले जीत तो राज करें,
या वीरगति पर नाज़ करें!
अब हर्षित मन को क्या भय है?
जब दोनों कर अपने जय है